जय विजय की परिभाषा का हुआ है नव अवलोकन
सत्य की वाणी बोल के नहीं उठा था दुर्योधन
कहते है विजय हुई थी पांडव की रण में
किन्तु परन्तु ये सोचो क्या कृष्णा ने शरण ली थी सत्य में
क्या जा के नहीं हस्तिनापुर में कृष्णा ने लगायी थी कलह
क्या न कह के पांडवो को विशाल उसने बढ़ाया था क्लेश
हममे युद्ध का बीज डाला ही है जब ईश्वर ने
मन के भावो को दुर्बल कह के हमे पुरुषार्थ सिखाया है ईश ने
क्यों कये अब बात अहिंसा की। क़्यु सुने अब श्रृंगार रस
आज युग है दिनकर का क्यों सुने अब सूर और जायस
उस झुरमुठ में बैठे साधु की वाणी को हमने नाकारा है
कुरुक्षेत्र के मैदान पे योद्धाओ को सत्य बोलते पहचाना है
सत्य आज का नहीं मिलता शास्त्रो में
सत्य की परिभाषा आज मिलती है शस्त्रों में
समय का अब ये ही है अंतर्नाद
उठाओ हथ्यार हो जाओ युद्ध को तैयार
ढूंढो उस सत्य को जिससे हो अंधकार का विनाश
आओ आगे बढे करे अपनी माटी का श्रृंगार
अंतिम प्रार्थना मात्र ये है की
“अहद”शहीद कहलाये अपनी माटी का’
बस यही मात्र हो अहंकार।
सत्य की वाणी बोल के नहीं उठा था दुर्योधन
कहते है विजय हुई थी पांडव की रण में
किन्तु परन्तु ये सोचो क्या कृष्णा ने शरण ली थी सत्य में
क्या जा के नहीं हस्तिनापुर में कृष्णा ने लगायी थी कलह
क्या न कह के पांडवो को विशाल उसने बढ़ाया था क्लेश
हममे युद्ध का बीज डाला ही है जब ईश्वर ने
मन के भावो को दुर्बल कह के हमे पुरुषार्थ सिखाया है ईश ने
क्यों कये अब बात अहिंसा की। क़्यु सुने अब श्रृंगार रस
आज युग है दिनकर का क्यों सुने अब सूर और जायस
उस झुरमुठ में बैठे साधु की वाणी को हमने नाकारा है
कुरुक्षेत्र के मैदान पे योद्धाओ को सत्य बोलते पहचाना है
सत्य आज का नहीं मिलता शास्त्रो में
सत्य की परिभाषा आज मिलती है शस्त्रों में
समय का अब ये ही है अंतर्नाद
उठाओ हथ्यार हो जाओ युद्ध को तैयार
ढूंढो उस सत्य को जिससे हो अंधकार का विनाश
आओ आगे बढे करे अपनी माटी का श्रृंगार
अंतिम प्रार्थना मात्र ये है की
“अहद”शहीद कहलाये अपनी माटी का’
बस यही मात्र हो अहंकार।