ऐ मुसलमां क्यू हो डरते इक इंसान से
क्या नहीं है यकीं तुम्हे अपने ईमान पे
तैयार तो थे तुम जहद को दज्जाल से
आज घबराये फिरते हो तुम इक अदने से इंसान से
दुनिया भर के हाकिमों की फ़िक्र है तुम्हे
दुनिया के हाकिम से लेकिन तुम्हे प्यार नहीं
क्यों परेशां घुमते कहते हो चलो हथ्यार उठाये
अरे अब तो कह दो की चलो कलम उठाये
कश्मीर पंजाब हैदराबाद की बाशिन्दगी का एहसास है तुम्हे
ये कहो की क्या खुदा की बन्दगी का भी एहसास है तुम्हे
शिया सुन्नी देओबंद बरेलवी में बटे हो तुम
याद करो आखिरी बार सिर्फ मुसलमान कब थे तुम
इल्म ए ग़ैब किसको था इस्पे बहस करते हो
दीन ओ दुनिया के इल्म लेने पे तवज्जो नहीं
मुल्क हाशिये पे है ये सोचते नहीं कभी
हिंदुस्तानी होने का हक़ पता है।पर क्यों अपने फ़र्ज़ की सोचते नहीं
ओवैसी मुख्तार को अपना रहनुमा मानते हो तुम
क्या तुममे कोई आलिम इंसान नहीं
अब तो इल्म हासिल करने की कोशिश करो तुम
क्यों अपने हालात को बदलने की तुममे ताक़त नहीं
एक मस्जिद की शहादत पे रोते हो तुम
दिल में खुदा को बैठाने का जज़्बा क्यों नहीं
ईमान की ताक़त नहीं है तुममे मुहब्बत ए रसूल की ताब नहीं
आफताब की गर्मी से घबराते हो , जहन्नुम की आग का ख्याल नहीं
खुदा से वाबस्ता फिरते हो तुम नमाज़ का तुम्हे एहसास नहीं
किस हक़ से खुदा से शिकवा करते हो तुम गर दीन पे इत्तेफ़ाक़ नही
अहद” यूँ ख्याल तो आया देर से है
शुक्र करो उस हाकिम का की तुम्हे ख्याल तो है
क्या नहीं है यकीं तुम्हे अपने ईमान पे
तैयार तो थे तुम जहद को दज्जाल से
आज घबराये फिरते हो तुम इक अदने से इंसान से
दुनिया भर के हाकिमों की फ़िक्र है तुम्हे
दुनिया के हाकिम से लेकिन तुम्हे प्यार नहीं
क्यों परेशां घुमते कहते हो चलो हथ्यार उठाये
अरे अब तो कह दो की चलो कलम उठाये
कश्मीर पंजाब हैदराबाद की बाशिन्दगी का एहसास है तुम्हे
ये कहो की क्या खुदा की बन्दगी का भी एहसास है तुम्हे
शिया सुन्नी देओबंद बरेलवी में बटे हो तुम
याद करो आखिरी बार सिर्फ मुसलमान कब थे तुम
इल्म ए ग़ैब किसको था इस्पे बहस करते हो
दीन ओ दुनिया के इल्म लेने पे तवज्जो नहीं
मुल्क हाशिये पे है ये सोचते नहीं कभी
हिंदुस्तानी होने का हक़ पता है।पर क्यों अपने फ़र्ज़ की सोचते नहीं
ओवैसी मुख्तार को अपना रहनुमा मानते हो तुम
क्या तुममे कोई आलिम इंसान नहीं
अब तो इल्म हासिल करने की कोशिश करो तुम
क्यों अपने हालात को बदलने की तुममे ताक़त नहीं
एक मस्जिद की शहादत पे रोते हो तुम
दिल में खुदा को बैठाने का जज़्बा क्यों नहीं
ईमान की ताक़त नहीं है तुममे मुहब्बत ए रसूल की ताब नहीं
आफताब की गर्मी से घबराते हो , जहन्नुम की आग का ख्याल नहीं
खुदा से वाबस्ता फिरते हो तुम नमाज़ का तुम्हे एहसास नहीं
किस हक़ से खुदा से शिकवा करते हो तुम गर दीन पे इत्तेफ़ाक़ नही
अहद” यूँ ख्याल तो आया देर से है
शुक्र करो उस हाकिम का की तुम्हे ख्याल तो है