कैद से हम आज़ाद तो हो गए
न जाने क्यों आज भी वो पिंजरा याद आता है
खुश तो नहीं थे उस पिंजरे में हम
साथी एक छूटा है वो याद आता है
रूसवा होना क्यों आसान था उनके लिए
हमें तो अब बेवफा होना भी नहीं आता है
कैद में भी हिफाज़त सी थी उनकी
आज अकेले में मन काँप जाता है
याद है उस कैद में नींद बहुत अच्छी आती थी
क्यों आज़ादी में वो सुकून नहीं आता है
“अहद” आदत हो गयी थी उनके साये में जीने की
आओ अब तन्हाई के साये में जीते है !
न जाने क्यों आज भी वो पिंजरा याद आता है
खुश तो नहीं थे उस पिंजरे में हम
साथी एक छूटा है वो याद आता है
रूसवा होना क्यों आसान था उनके लिए
हमें तो अब बेवफा होना भी नहीं आता है
कैद में भी हिफाज़त सी थी उनकी
आज अकेले में मन काँप जाता है
याद है उस कैद में नींद बहुत अच्छी आती थी
क्यों आज़ादी में वो सुकून नहीं आता है
“अहद” आदत हो गयी थी उनके साये में जीने की
आओ अब तन्हाई के साये में जीते है !